Description
पुस्तक “मुसाफिर फिर गया” एक काव्य संग्रह हैं। जिसमें ग़ज़लें, शायरी और कुछ लेख प्रसंग हैं। यह किताब प्यार में डूबे प्रेमी से लेकर प्यार में टूटे पंछी के लिए एक मरहम का लेप लगाने जैसा प्रतीत होती है। दुनिया की चालाकियां और अपना भोलापन सदृष्य कराया है, लेखक ने। मुसाफिर एक भटका राहगीर जिसे पता था मंजिल का पर मंजिल को नहीं पता उसके राहगीर का, तो इस प्रकार न राहगीर को कभी मंजिल मिल पाई और न मंजिल को कभी उसका राहगीर।
यही है “मुसाफ़िर”।
पुस्तक में सहजतापूर्वक प्रेम से दूर होने पर पीड़ा की अनुभूति तथा प्रेम में होने पर प्रेम को पाने की इच्छा। इतना है एक मुसाफिर।
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